Ravana: Height of Mismanagement

उहाँ निसाचर रहहिं ससंका। जब तें जारि गयउ कपि लंका॥

निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा। नहिं निसिचर कुल केर उबारा।1॥

सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें। हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें॥

सभय सुभाउ नारि कर साचा। मंगल महुँ भय मन अति काचा

काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।

सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत

बुध पुरान श्रुति संमत बानी। कही बिभीषन नीति बखानी॥

सुनत दसानन उठा रिसाई। खल तोहिं निकट मृत्यु अब आई॥1॥