युद्ध नहीं जिनके जीवन में वे भी बहुत अभागे होंगे या तो प्रण को तोड़ा होगा या फिर रण से भागे होंगे …
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता …
वह खून कहो किस मतलब काजिसमें उबाल का नाम नहीं।वह खून कहो किस मतलब काआ सके देश के काम नहीं।वह खून कहो …
भगवान सभा को छोड़ चले,करके रण गर्जन घोर चले सामने कर्ण सकुचाया सा,आ मिला चकित भरमाया सा हरि बड़े प्रेम से कर …