Life is a war

युद्ध नहीं जिनके जीवन में

वे भी बहुत अभागे होंगे

या तो प्रण को तोड़ा होगा

या फिर रण से भागे होंगे

दीपक का कुछ अर्थ नहीं है

जब तक तम से नहीं लड़ेगा

दिनकर नहीं प्रभा बाँटेगा

जब तक स्वयं नहीं धधकेगा

कभी दहकती ज्वाला के बिन

कुंदन भला बना है सोना

बिना घिसे मेहंदी ने बोलो

कब पाया है रंग सलौना

जीवन के पथ के राही को

क्षण भर भी विश्राम नहीं है

कौन भला स्वीकार करेगा

जीवन एक संग्राम नहीं है।।

अपना अपना युद्ध सभी को

हर युग में लड़ना पड़ता है

और समय के शिलालेख पर

खुद को खुद गढ़ना पड़ता है

सच की खातिर हरिश्चंद्र को

सकुटुम्ब बिक जाना पड़ता

और स्वयं काशी में जाकर

अपना मोल लगाना पड़ता

दासी बनकरके भरती है

पानी पटरानी पनघट में

और खड़ा सम्राट वचन के

कारण काशी के मरघट में

ये अनवरत लड़ा जाता है

होता युद्ध विराम नहीं है

कौन भला स्वीकार करेगा

जीवन एक संग्राम नहीं है।।

हर रिश्ते की कुछ कीमत है

जिसका मोल चुकाना पड़ता

और प्राण पण से जीवन का

हर अनुबंध निभाना पड़ता

सच ने मार्ग त्याग का देखा

झूठ रहा सुख का अभिलाषी

दशरथ मिटे वचन की खातिर

राम जिये होकर वनवासी

पावक पथ से गुजरीं सीता

रही समय की ऐसी इच्छा

देनी पड़ी नियति के कारण

सीता को भी अग्नि परीक्षा

वन को गईं पुनः वैदेही

निरपराध ही सुनो अकारण

जीतीं रहीं उम्रभर बनकर

त्याग और संघर्ष उदाहरण

लिए गर्भ में निज पुत्रों को

वन का कष्ट स्वयं ही झेला

खुद के बल पर लड़ा सिया ने

जीवन का संग्राम अकेला

धनुष तोड़ कर जो लाए थे

अब वो संग में राम नहीं है

कौन भला स्वीकार करेगा

जीवन एक संग्राम नहीं है।।

By— अर्जुन सिसौदिया