मूलमंत्र केवल मन के चाहे से हीमनचाही होती नहीं किसी की।बिना चले कब कहाँ हुई हैमंज़िल पूरी यहाँ किसी की।। पर्वत की चोटी छूने कोपर्वत पर चढ़ना पड़ता है।सागर से मोती लाने कोगोता खाना ही पड़ता है।। उद्यम किए बिना तो चींटीभी अपना घर बना न पाती।उद्यम किए बिना न सिंह कोभी अपना शिकार मिल पाता।। इच्छा पूरी होती तब, जबउसके साथ जुड़ा हो उद्यम।प्राप्त सफलता करने का है,‘मूल मंत्र’ उद्योग परिश्रम।। ~ द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी